नर हो, न निराश करो मन को यह कविता मैथिलीशरण गुप्त की एक प्रसिद्ध कविता है जो मानव जीवन की उत्सुकता, ऊर्जा और सामर्थ्य को प्रेरित करती है। इस कविता में गुप्तजी ने मानवता की महत्ता, साहस, और संघर्ष को महत्वपूर्ण रूप से उजागर किया है।
इस कविता में कवि ने मानव को निराश नहीं होने की प्रेरणा दी है। वह कहते हैं कि चाहे जीवन में कितनी भी मुश्किलें आएं, हालात कितने भी कठिन क्यों न बनें, हमें अपनी हिम्मत और साहस से प्रेरित रहना चाहिए।
नर हो, न निराश करो मन को 💪🙂
कुछ काम करो, कुछ काम करो 💼🔨
जग में रह कर कुछ नाम करो 🌍🏆
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो ❓🤔
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो 🤓🚫
कुछ तो उपयुक्त करो तन को 💪👍
नर हो, न निराश करो मन को 💪🙂
सँभलो कि सुयोग न जाए चला 🚶♂️🚫
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला 🤷♂️🤔
समझो जग को न निरा सपना 💭🌍
पथ आप प्रशस्त करो अपना 🛤🌟
अखिलेश्वर है अवलंबन को 🙏🌟
नर हो, न निराश करो मन को 💪🙂
जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ 📚🧠
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ ❓🤔
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो 🌟🌟
उठके अमरत्व विधान करो 🌟📖
दवरूप रहो भव कानन को 🌳🌺
नर हो न निराश करो मन को 💪🙂
निज गौरव का नित ज्ञान रहे 📚🧠
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे 🤗🌟
मरणोत्तैर गुंजित गान रहे 🎶🌟
सब जाए अभी पर मान रहे 🚶♂️🌟
कुछ हो न तजो निज साधन को 💪👍
नर हो, न निराश करो मन को 💪🙂
प्रभु ने तुमको कर दान किए 🙏🎁
सब वांछित वस्तु विधान किए 💫🌟
तुम प्राप्त करो उनको न अहो 🌟🎁
फिर है किसका यह दोष कहो ❓🤔
समझो न अलभ्य किसी धन को 💰🚫
नर हो, न निराश करो मन को 💪🙂
किस गौरव के तुम योग्य नहीं 🌟❌
कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं 😊🌟
जन हो तुम भी जगदीश्वर के 🌟🙏
सब है जिसके अपने घर के 🏠🌟
फिर दुर्लभ क्या उसके जन को 💫🌟
नर हो, न निराश करो मन को 💪🙂
करके विधि वाद न खेद करो 🤷♂️🚫
निज लक्ष्य निरंतर भेद करो 🎯🌟
बनता बस उद्यम ही विधि है 💪🔨
मिलती जिससे सुख की निधि है 🌟💰
समझो धिक् निष्क्रिय जीवन को 🚶♂️🚫
नर हो, न निराश करो मन को 💪🙂
कुछ काम करो, कुछ काम करो 💼🔨
+ There are no comments
Add yours